Bhagvati Charan Verma
Translating my favourite paragraphs:
पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;
जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;
आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी
सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।
((Lover is saying that his dilapidated, attritioned existence was once witness to the fresh green of love (पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;). That his eyes, although crying today, knew days of extreme happiness once (जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;). He is saying that although all his life's dreams have fallen into his laps in the form of tears, he really did believe in those dreams once (आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।)
आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;
जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;
जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ;
सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।
(There was a time when the sun shone with all its fatherly warmth (आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;) and the sky above which is only giving out fire today, used to give water (जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;). It might be difficult to believe but my voice, which inspires only fear and doubt today, once used to inspire the most rich and beautiful melodies (जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ; सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।).
तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;
मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'
ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ?
है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !
The lover is saying to his loved one that your eyes turn tearful at seeing my sad condition (तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;) to which I smile and persuade you not to shed tears at this already broken relationship (मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'). It is really worthless, pondering over such deep questions and situations. The only thing I would like to say is that please do not cry as my situation is inspired only by a helpless situation which plagues everyone and not any fault of yours. (ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ? है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !)
कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन,
संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;
फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?
जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !
There have been so many love filled hearts, so many intoxicated eyes and so many beautiful love stories (कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन, संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;). Then why was it that only I was the unlucky one who found an unbearable load in the form of your love (फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?). Its so sad and ironical that the one person who gave me this extremely pure relationship of love, was the reason behind its cold obliteration (जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !).
कब तुमने मेरे मानस में था स्पन्दन का संचार किया ?
कब मैंने प्राण तुम्हारा निज प्राणों से था अभिसार किया ?
हम-तुमको कोई और यहाँ ले आया-जाया करता है;
मैं पूछ रहा हूँ आज अरे किसने कब किससे प्यार किया ?
जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,
प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;
जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;
तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?
(It is well known that the ocean which gave nectar also produced poison (reference to saagar manthan) (जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,)... it is evident that koyal's beautiful song sounds so touching as it has a hidden sadness (प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;)... in reality, what the world considers destruction, is just a new begining (जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;). So please do not cry as my sadness is only superficial, hiding behind it a hope which will never die (तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?)...
मेरी आँखों की दो बूँदों में लहरें उठतीं लहर-लहर;
मेरी सूनी-सी आहों में अम्बर उठता है मौन सिहर,
निज में लय कर ब्रह्माण्ड निखिल मैं एकाकी बन चुका यहाँ,
संसृति का युग बन चुका अरे मेरे वियोग का प्रथम प्रहर !
कल तक जो विवश तुम्हारा था, वह आज स्वयं हूँ मैं अपना;
सीमा का बन्धन जो कि बना, मैं तोड़ चुका हूँ वह सपना;
पैरों पर गति के अंगारे, सर पर जीवन की ज्वाला है;
वह एक हँसी का खेल जिसे तुम रोकर कह देती 'तपना'।
मैं बढ़ता जाता हूँ प्रतिपल, गति है नीचे गति है ऊपर;
भ्रमती ही रहती है पृथ्वी, भ्रमता ही रहता है अम्बर !
इस भ्रम में भ्रमकर ही भ्रम के जग में मैंने पाया तुमको;
जग नश्वर है, तुम नश्वर हो, बस मैं हूँ केवल एक अमर !
-------------------------------------------
संकोच-भार को सह न सका पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गये मौन असफलताओं को प्रिय आज काँपते हुए अधर ।
छिप सकी हृदय की आग कहीं ? छिप सका प्यार का पागलपन ?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में हो बाँध रही प्यासा जीवन ।
तुम करूणा की जयमाल बनो, मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में, बस एक प्रेम का हो बन्धन ।
आकुल नयनों में छलक पड़ा जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही तन्मयता की बेसुध हलचल ।
तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर ।
तुम सुषमा की मुस्कान बनो अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो, मैं तुममें निज साधना अचल ।
पल-भर की इस मधु-बेला को युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि, मेरे प्राणों में तुम भर दो ।
तुम एक अमर सन्देश बनो, मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो, जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ ।
तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?
थोड़ा साहस, इतना कह दो तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की तुम सुलझी हुई कहानी हो ।
तुममें लय होने को उत्सुक अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की तुममें ही तो स्वर-लहरी है ।
होंठों पर हो मुस्कान तनिक नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो तुम मेरी ही दीवानी हो ।
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पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;
जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;
आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी
सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।
((Lover is saying that his dilapidated, attritioned existence was once witness to the fresh green of love (पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;). That his eyes, although crying today, knew days of extreme happiness once (जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;). He is saying that although all his life's dreams have fallen into his laps in the form of tears, he really did believe in those dreams once (आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।)
आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;
जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;
जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ;
सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।
(There was a time when the sun shone with all its fatherly warmth (आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;) and the sky above which is only giving out fire today, used to give water (जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;). It might be difficult to believe but my voice, which inspires only fear and doubt today, once used to inspire the most rich and beautiful melodies (जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ; सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।).
तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;
मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'
ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ?
है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !
The lover is saying to his loved one that your eyes turn tearful at seeing my sad condition (तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;) to which I smile and persuade you not to shed tears at this already broken relationship (मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'). It is really worthless, pondering over such deep questions and situations. The only thing I would like to say is that please do not cry as my situation is inspired only by a helpless situation which plagues everyone and not any fault of yours. (ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ? है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !)
कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन,
संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;
फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?
जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !
There have been so many love filled hearts, so many intoxicated eyes and so many beautiful love stories (कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन, संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;). Then why was it that only I was the unlucky one who found an unbearable load in the form of your love (फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?). Its so sad and ironical that the one person who gave me this extremely pure relationship of love, was the reason behind its cold obliteration (जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !).
कब तुमने मेरे मानस में था स्पन्दन का संचार किया ?
कब मैंने प्राण तुम्हारा निज प्राणों से था अभिसार किया ?
हम-तुमको कोई और यहाँ ले आया-जाया करता है;
मैं पूछ रहा हूँ आज अरे किसने कब किससे प्यार किया ?
जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,
प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;
जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;
तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?
(It is well known that the ocean which gave nectar also produced poison (reference to saagar manthan) (जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,)... it is evident that koyal's beautiful song sounds so touching as it has a hidden sadness (प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;)... in reality, what the world considers destruction, is just a new begining (जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;). So please do not cry as my sadness is only superficial, hiding behind it a hope which will never die (तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?)...
मेरी आँखों की दो बूँदों में लहरें उठतीं लहर-लहर;
मेरी सूनी-सी आहों में अम्बर उठता है मौन सिहर,
निज में लय कर ब्रह्माण्ड निखिल मैं एकाकी बन चुका यहाँ,
संसृति का युग बन चुका अरे मेरे वियोग का प्रथम प्रहर !
कल तक जो विवश तुम्हारा था, वह आज स्वयं हूँ मैं अपना;
सीमा का बन्धन जो कि बना, मैं तोड़ चुका हूँ वह सपना;
पैरों पर गति के अंगारे, सर पर जीवन की ज्वाला है;
वह एक हँसी का खेल जिसे तुम रोकर कह देती 'तपना'।
मैं बढ़ता जाता हूँ प्रतिपल, गति है नीचे गति है ऊपर;
भ्रमती ही रहती है पृथ्वी, भ्रमता ही रहता है अम्बर !
इस भ्रम में भ्रमकर ही भ्रम के जग में मैंने पाया तुमको;
जग नश्वर है, तुम नश्वर हो, बस मैं हूँ केवल एक अमर !
-------------------------------------------
संकोच-भार को सह न सका पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गये मौन असफलताओं को प्रिय आज काँपते हुए अधर ।
छिप सकी हृदय की आग कहीं ? छिप सका प्यार का पागलपन ?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में हो बाँध रही प्यासा जीवन ।
तुम करूणा की जयमाल बनो, मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में, बस एक प्रेम का हो बन्धन ।
आकुल नयनों में छलक पड़ा जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही तन्मयता की बेसुध हलचल ।
तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर ।
तुम सुषमा की मुस्कान बनो अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो, मैं तुममें निज साधना अचल ।
पल-भर की इस मधु-बेला को युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि, मेरे प्राणों में तुम भर दो ।
तुम एक अमर सन्देश बनो, मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो, जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ ।
तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?
थोड़ा साहस, इतना कह दो तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की तुम सुलझी हुई कहानी हो ।
तुममें लय होने को उत्सुक अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की तुममें ही तो स्वर-लहरी है ।
होंठों पर हो मुस्कान तनिक नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो तुम मेरी ही दीवानी हो ।
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7 Comments:
haan main is site ko to jaanta hoon lekin mujhe pata nahin tha ki shabdaarth bhee diye hain yahan pe... waise is baar desh se hindi dictionary manga raha hoon... december tak aa jaayegi... mujhe net pe koi aur aisee site mili nahin hai jahan pe comprehensive dictionary ho... urdu ki to hai =... for eg:
http://www.geocities.com/urdudict/
lekin dukh ki baat hai ki hindi ki aisee ek bhee site nahin hai
reminds me of the poems I read in CBSE, dont remembe how it begins -
geeli umar banane walon, dube bina nahane walo,
laakh kare pathjhar koshish par sawaan nahi mara karta hai.
and ....kuchh mukhdo ki narazi se darpan nahi mara karta hai.
Thanks for the collection, specially for Ghalib's(in your other posts).
Ankit I there is a Poem by Neeraj I've recently posted on my blog. It's a must read for anyone who likes hindi poetry. if you know some of the gr8 ones, wud appreciate if you'd let me know too.
cheers:)
hi friend i suddenly came across ur site wel i liked it if u dnt mind plzvisit my site www.careerguid.blogspot.com i hope u vl enjoy it and plz give a link to ur site and i vl do da same thaku
could you also pls write about the other poem "Deewano Ki Hasti" and your thoughts/ meaning of the same...
Am not too good at Hindi but I kind of caught the gist of it and liked the philosophy
This comment has been removed by the author.
can i have some stuff of hindi novels as Do bake by bhagwaticharan verma and Gauri by subhadrakumari chauwan
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