Ishtiyaaq

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Location: San Diego, California, United States

Like a particularly notorious child's tantrums, a mountaneous river's intemperance, a volcano's reckless carelessness and the dreamy eyes of a caged bird, imagination tries to fly unfettered. Hesitant as she takes those first steps, she sculpts those ambitious yet half baked earthen pots.

Friday, September 29, 2006

Bhagvati Charan Verma

Translating my favourite paragraphs:

पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;
जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;
आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी
सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।

((Lover is saying that his dilapidated, attritioned existence was once witness to the fresh green of love (पतझड़ के पीले पत्तों ने प्रिय देखा था मधुमास कभी;). That his eyes, although crying today, knew days of extreme happiness once (जो कहलाता है आज रुदन, वह कहलाया था हास कभी;). He is saying that although all his life's dreams have fallen into his laps in the form of tears, he really did believe in those dreams once (आँखों के मोती बन-बनकर जो टूट चुके हैं अभी-अभी सच कहता हूँ, उन सपनों में भी था मुझको विश्वास कभी ।)

आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;
जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;
जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ;
सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।

(There was a time when the sun shone with all its fatherly warmth (आलोक दिया हँसकर प्रातः अस्ताचल पर के दिनकर ने;) and the sky above which is only giving out fire today, used to give water (जल बरसाया था आज अनल बरसाने वाले अम्बर ने;). It might be difficult to believe but my voice, which inspires only fear and doubt today, once used to inspire the most rich and beautiful melodies (जिसको सुनकर भय-शंका से भावुक जग उठता काँप यहाँ; सच कहता-हैं कितने रसमय संगीत रचे मेरे स्वर ने ।).

तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;
मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'
ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ?
है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !

The lover is saying to his loved one that your eyes turn tearful at seeing my sad condition (तुम हो जाती हो सजल नयन लखकर यह पागलपन मेरा;) to which I smile and persuade you not to shed tears at this already broken relationship (मैं हँस देता हूँ यह कहकर 'लो टूट चुका बन्धन मेरा!'). It is really worthless, pondering over such deep questions and situations. The only thing I would like to say is that please do not cry as my situation is inspired only by a helpless situation which plagues everyone and not any fault of yours. (ये ज्ञान और भ्रम की बातें- तुम क्या जानो, मैं क्या जानूँ ? है एक विवशता से प्रेरित जीवन सबका, जीवन मेरा !)

कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन,
संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;
फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?
जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !

There have been so many love filled hearts, so many intoxicated eyes and so many beautiful love stories (कितने ही रस से भरे हृदय, कितने ही उन्मद-मदिर-नयन, संसृति ने बेसुध यहाँ रचे कितने ही कोमल आलिंगन;). Then why was it that only I was the unlucky one who found an unbearable load in the form of your love (फिर एक अकेली तुम ही क्यों मेरे जीवन में भार बनीं ?). Its so sad and ironical that the one person who gave me this extremely pure relationship of love, was the reason behind its cold obliteration (जिसने तोड़ा प्रिय उसने ही था दिया प्रेम का यह बन्धन !).

कब तुमने मेरे मानस में था स्पन्दन का संचार किया ?
कब मैंने प्राण तुम्हारा निज प्राणों से था अभिसार किया ?
हम-तुमको कोई और यहाँ ले आया-जाया करता है;
मैं पूछ रहा हूँ आज अरे किसने कब किससे प्यार किया ?

जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,
प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;
जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;
तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?

(It is well known that the ocean which gave nectar also produced poison (reference to saagar manthan) (जिस सागर से मधु निकला है, विष भी था उसके अन्तर में,)... it is evident that koyal's beautiful song sounds so touching as it has a hidden sadness (प्राणों की व्याकुल हूक-भरी कोयल के उस पंचम स्वर में;)... in reality, what the world considers destruction, is just a new begining (जिसको जग मिटना कहता है, उसमें ही बनने का क्रम है;). So please do not cry as my sadness is only superficial, hiding behind it a hope which will never die (तुम क्या जानो कितना वैभव है मेरे इस उजड़े घर में ?)...

मेरी आँखों की दो बूँदों में लहरें उठतीं लहर-लहर;
मेरी सूनी-सी आहों में अम्बर उठता है मौन सिहर,
निज में लय कर ब्रह्माण्ड निखिल मैं एकाकी बन चुका यहाँ,
संसृति का युग बन चुका अरे मेरे वियोग का प्रथम प्रहर !

कल तक जो विवश तुम्हारा था, वह आज स्वयं हूँ मैं अपना;
सीमा का बन्धन जो कि बना, मैं तोड़ चुका हूँ वह सपना;
पैरों पर गति के अंगारे, सर पर जीवन की ज्वाला है;
वह एक हँसी का खेल जिसे तुम रोकर कह देती 'तपना'।

मैं बढ़ता जाता हूँ प्रतिपल, गति है नीचे गति है ऊपर;
भ्रमती ही रहती है पृथ्वी, भ्रमता ही रहता है अम्बर !
इस भ्रम में भ्रमकर ही भ्रम के जग में मैंने पाया तुमको;
जग नश्वर है, तुम नश्वर हो, बस मैं हूँ केवल एक अमर !

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संकोच-भार को सह न सका पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गये मौन असफलताओं को प्रिय आज काँपते हुए अधर ।

छिप सकी हृदय की आग कहीं ? छिप सका प्यार का पागलपन ?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में हो बाँध रही प्यासा जीवन ।

तुम करूणा की जयमाल बनो, मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में, बस एक प्रेम का हो बन्धन ।

आकुल नयनों में छलक पड़ा जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही तन्मयता की बेसुध हलचल ।

तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर ।

तुम सुषमा की मुस्कान बनो अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो, मैं तुममें निज साधना अचल ।

पल-भर की इस मधु-बेला को युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि, मेरे प्राणों में तुम भर दो ।

तुम एक अमर सन्देश बनो, मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो, जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ ।

तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?

थोड़ा साहस, इतना कह दो तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की तुम सुलझी हुई कहानी हो ।

तुममें लय होने को उत्सुक अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की तुममें ही तो स्वर-लहरी है ।

होंठों पर हो मुस्कान तनिक नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो तुम मेरी ही दीवानी हो ।

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Thursday, September 07, 2006

Ramdhari Singh Dinkar

धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा।
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है,
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है?
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे।
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ।
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ।

बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा,
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा।
तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ।
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ।

आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है,
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है,
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है,
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है!
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है,
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है।
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ।
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ।

मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है,
अरमानआरज़ू की लाशें निकल रही हैं।
भीगीखुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं,
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं,
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे,
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे।
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ।
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ।

आँसूभरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे,
मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे।
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे,
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे।
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे,
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे।
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ।
बेचैन ज़िन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ।

ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे,
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे।
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे,
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे।
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे,
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे।
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ।
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ।

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Monday, June 05, 2006

Subhadra Kumari Chauhan

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

This is more than a poem to me. It reminds me of my childhood. It was one of the few poems I really used to like. Hence, it remains one of my favourites. And moreover how can anyone not like it. Afterall it smells of the passion which won us our independence.

Thursday, June 01, 2006

Sahir Ludhiyanvi

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अन्दाज़ नज़रों से
ना मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
ना ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाईयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

तारूफ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
तालुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

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Friday, May 19, 2006

Dushyant Kumar

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

Soulful lyrics celebrating hope and the will of fighting back howsoever bad the circumstances might be. I in turn get reminded of the lyrics from 1942 a love story which went:

दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है,
लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है।

Beautiful. Isn't it?
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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

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Wednesday, May 10, 2006

Saba Afgani

गुलशन कि फकत फूलों से नहीं, काटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिये इस दुनिया में गम की भी ज़रूरत होती है

The beauty of the garden is not only because of the flowers but is also because of the thorns. In the same way, along with all the happiness, the presence of sorrows is very necessary to the essence of life.

ऐ वैज़-ए-नादाँ करता है तु क्या एक कयामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं, यहाँ रोज़ कयामत होती है

O Preacher (वैज़), dont talk to me about the Day of Judgement (Armageddon), Here, everyday my eyes meet hers, and everyday becomes the Day of Judgement.

वो पुरशीशे-गम को आये हैँ, कुछ कह ना सकूं, चुप रह ना सकूं
खामोश रहूं तो मुश्किल है, कह दूं तो शिकायत होती है

She has come to enquire about the reasons of my sorrows. I am neither able to say anything nor am I able to keep quite. My dilemma is that it is too painful to keep quiet about my condition but if I clear my heart out, it might foster complaints from her.

करना ही पड़ेगा ज़प्त-ए-आलम, पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फरयाद-ओ-फुगाँ से ऐ नादाँ, तौहीन-ए-मौहब्बत होती है

I guess, I have to bottle my emotions (ज़प्त-ए-आलम) because I know that by crying out loudly and beseeching attention (फरयाद-ओ-फुगाँ), I will only be disgracing love.

जो आके रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क ना छलके आँखों से उस अश्क की कीमत होती है

This is my favourite from this Ghazal. It means that the tears which well out of my eyes and fall on my lap will be worth only as much as water. On the other hand, those tears which only moisten the eyes but do not fall are really prized by the world (her).

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Robert Frost

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village, though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it's queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there's some mistake.
The only other sound's the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark, and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.

Poem titled 'Stopping By Woods On A Snowy Evening'

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Sunday, April 30, 2006

Mirza Ghalib

Most of Ghalib's ghazals are written for someone whom the speaker holds very dear. It is never clear though, whether that special person is a girl a boy or god. Ghalib has successfully maintained this ambiguity in all his creations. For the sake of explanation, I shall assume that the revered subject is a girl.

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ के सर होने तक

My prayer/pleading to you will need a lifetime to get realized. By the time it makes any effect on you, I might not be alive. ज़ुल्फ के सर refers to the change which the speaker is expecting on his/her lover/god as a result of the speaker's pleadings.

हमने माना कि तघाफुल ना करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक

तघाफुल means neglect. I agree that you will not neglect me once you know the state of my heart but I wonder if I shall be alive by the time you get a wind of the affairs.

परतव-ए-खुर से है शबनम को फना की तालीम
मैं भी हँू एक इनायत कि नज़र होने तक

परतव-ए-खुर is the image/reflection of sunlight. In the same way as a drop of dew (शबनम) is aware of its mortality by sunlight, I am alive just to have that one sympathetic/understanding gaze of yours.

गम-ए-हस्ती का असद किससे हो जुज़ मर्ग इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक

गम-ए-हस्ती is the sum total of the pains of living. It now seems that all my pains will find their solution in my death. Till then I am like that flame which has to burn in every colour till her agony is relieved by the first light of the day

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ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता

It was not in my destiny that I got a chance to meet her. Considering this, I welcome my death as an extended life would only have meant more longing and pain.

तेरे वादे पर जिये हम तो ये जान झूठ जाना
के खुशी से मर ना जाते अगर ऐतबार होता

Although I always knew that your promise was fake, I nevertheless lived believing that lie. If only I had faith in your truthfulness, I would have died of ecstacy

कहँू किससे मैं कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता।

Whom do I tell how painful these sad nights are? If only I had to die just once, I would have happily accepted it.

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