Sahir Ludhiyanvi
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अन्दाज़ नज़रों से
ना मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
ना ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाईयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
तारूफ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
तालुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
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ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अन्दाज़ नज़रों से
ना मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
ना ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाईयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
तारूफ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
तालुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो
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1 Comments:
This piece was song by mahender kapoor in the film Gumrah. Exellent composition and Sahir's poetry although at its poetic best is not too difficult even for a layman to understand.
His work esp the ones done with Khayam are really ethereal.
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