Gulzar
दिन खाली खाली बरतन है,
और रात है जैसे अंधा कुआं,
इन सूनी अकेली आँखों में,
आँसू कि जगह आता है धुआँ
जीने कि वजह तो कोई नहीं,
मरने का बहाना ढूँढता है।
एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में,
आबोदाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है,
Lyrics from the song "Ek Akela" from the movie "Gharonda". Here Gulzar beautifully expresses the feeling of helplessness, hopelessness and futility which dawn upon the mind of someone who has become tired of trying. He compares the day to an empty vessel which does not offer anything, not even hope. Night is like a bottomless, dark, well. Hopelessness has reached such acuteness that tears no more come to the eyes. Its only, burning, painful smoke.
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तेरे गमों कि डली बनाकर ज़ुबँा पे रख ली है देखो मैंने
वो कतरा कतरा पिघल रही है, मैं कतरा कतरा ही जी रहा हँू।
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जबसे तुम्हारे नाम कि मिसरी होंठ लगाई है
मीठा सा गम है और मीठी सी तनहाई है।
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किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं
ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है
दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है
जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं
ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर
ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे
देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से
दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,
ना कोइ देखने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,
ना दिन होता है ना रात, सभी कुछ रुक गया है,
वो क्या मौसम का झोंका था, जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है
The brilliance of Gulzar at play from the movie Raincoat as he describes a life in waiting, halted at its footsteps, frozen in time, waiting for someone to urge time to move forward. (as commented by Parth)
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सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर,
दरवाज़ा खोला और देखा,
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं,
आँखों से मानूस थे सारे,
चेहरे सारे सुने सुनाये,
पाँव धोये, हाथ धुलवाये,
आँगन में आसन लगवाये,
और तन्दूर पर मक्के के कुछ मोटे मोटे रोख पकाये,
पोटली में मेहमान मेरे,
पिछले सालों कि फसलों का गुड़ लाये थे,
आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था,
हाथ लगा कर देखा तो तन्दूर अभी तक बुझा नहीं था,
और होठों पे मीठे गुड़ का ज़ायका अब तक चिपक रहा था,
ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा,
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली,
सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख्वाबों का खून हुआ था।
Gulzaar, very beautifully describes the human pining which gets brutally buried under the military hostilities between India and Pakistan. This is soulfully narrated in his own mellifluous voice in the album Marasim.
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शाम से आँख मे नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,
दफ्न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक्त रहता नहीं कहीं छुपकर,
इसकी आदत भी आदमी सी है।
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दिल ढूंढता है, फिर वही फुरसत के रात दिन,
बैठे रहें, तसव्वुरे जाना किये हुये,
जाड़ों कि नरम धूप और आंगन में लेट कर,
आँखों पे खीँच कर तेरे दामन के साये को,
औन्धे पड़े रहें कभी करवट लिये हुये
या गरमियों कि रात जो पुरवाईयाँ चलें,
ठंडी सफेद चादरों पे जागें देर तक,
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुये,
दिल ढूंढता है...
So nostalgic... and so beautifully expressed...
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इस मोड़ से जाते हैं,
कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें,
पत्थर की हवेली को शीशे के घरोंदों में,
तिनकों के नशेमन तक,
इस मोड़ से जाते हैं।
तेरे बिना ज़िन्दगी से शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं,
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं
जी में आता है, तेरे दामन में सर झुका के हम, रोते रहें, रोते रहें,
तेरी भी आँखों में आँसुओं कि नमी तो नहीं
Aandhi has one of my favourite Gulzar collections. The above two songs stand testimony to the intricately woven genius of the great man. Especially the line "जी में आता है..." always sends shivers down my spine owing to its amazing emotional content.
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मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
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9 Comments:
gulzar ki in panktiyoon se, tune meri photo pe meri dil ki awaaz chaap kar, mukaammal kar diya.
isi baat pe,
KABHI KISI KO MUKAMMAL JAHAN NAHIN MILTA ...
kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta
kahin zameen to kahin aasman nahin milta
jisay bhi dekhiyay woh apnay aap mein goum hai
zuban mili hai magar hum zuban nahin milta
kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta....
bujha saka hai bhala kaun waqt kay shoulay
yeh aisi aag hai jis mein dhuaan nahin milta
kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta....
teray jahan mein aisa nahin kay pyar na ho
jahan umeed ho iski wahan nahin milta
kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta
kahin zameen to kahin aasman nahin milta...
kya baat hai shaayar mahashay... wah wah
Gulzar poetry elevates even the most mundane of situations. Case in point - Kajra re.
We have countless gems from him in our movies.
My favs include:
Mora gora ang li le , mohe shyaam rang di de ( Sujatha)
Humne dekhi un aankhon ki mehekthe hui kushboo (Khamoshi)
Aandhi( All compositions are superlative)
Humari taraf se bhi kuch:
Shyam se aankh mein nami si hain.
Aaj aapki kami si hain...
Dafn kardo humein ki sans mile,
Nafz kuch daer se thami si hain.
Waqt nahin rehta kahin tikkar,
Uski aadat bhi aadmi se hain.
Koi rishta nahi raha phir bhi,
ek taslim laajmi si hain.
was the last one from Anand? wo movie aath saal ho gaye honge, but the moment I read it, I could imagine Rajesh Khanna's voice saying those words over a silent background...
yup, Anand. one of the most beautiful movie poetry
Good collection Ankit. There are some online fan sites for Gulzar and I like the filmography etc. that they have there. I especially like the fact that you typed it all up in Hindi. Good going buddy. Will be back to read more poetry on your site.
Here is a beautiful Nazm by Gulzar from the movie Raincoat..
One of the best films ever. Very very poignant. I think everyone would like to hear the Nazm in Gulzar sahab's own voice.
Here is the full nazm in his voice:
Mausam Ka Jhaunka
lajawab shayri aur lajawab collection.
khoobsurat koshish. congratulations.
lajawab shayri...
lajawab koshish...
congratulations.
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